The Tiger King Summary In Hindi
प्रतिबन्धपुरम का महाराज इस कहानी का नायक है। वह ‘टाइगर किंग’ के नाम से भी विख्यात हुआ (जाना गया)। जब उसका जन्म हुआ तो ज्योतिषियों ने उसी समय भविष्यवाणी की थी कि एक दिन बाघ राजा को वास्तव में मरना पड़ेगा। दस दिन की आयु के राजकुमार ने भविष्यवक्ताओं को ‘ओ बुद्धिमान भविष्य द्रष्टाओ!’ कह कर सम्बोधित किया। उसने उन्हें उसकी मृत्यु का ढंग बताने को कहा। मुख्य ज्योतिषी ने कहा कि मृत्यु शेर (बाघ) द्वारा आयेगी। राजकुमार गुर्राया, “बाघों को सावधान कर दो!”
जबे युवराज बीस वर्ष की आयु में वयस्क हुआ, तो उसका राज्य उसके हाथ में आ गया। प्रतिबन्धपुरम राज्य में कई जंगल थे। उनमें बाघ भी थे। महाराजा ने बाघ का शिकार करना आरम्भ कर दिया। जब उसने पहली बाघ मारा तो राजा रोमान्चित हुआ। उसने राजकीय ज्योतिषी को बुलवाया। वृद्ध व्यक्ति ने कहा, “महाराजाधिराज, चाहे आप इस ढंग से 99 बाघ मार दें किन्तु आप को 100वें बाघ से अत्यन्त सावधान रहना चाहिए। यदि वह 100वें बाघ को मार पाया, तो ज्योतिषी ने प्रण किया कि वह ज्योतिष की अपनी सभी पुस्तकें फाड़ डालेगा तथा उन्हें आग लगा देगा।”
राज्य में महाराजा के अतिरिक्त किसी अन्य द्वारा बाघ के आखेट (शिकार) पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया । महाराजा ने शपथ ली कि वह अन्य सभी मामलों की ओर पूरे 100 बाघ मारने के उपरान्त ही ध्यान देगा। आरम्भ में राजा अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने में पूर्णतया सुनिश्चित लगा। उसने कई खतरों का भी सामना किया। कई बार गोली अपना निशाना चूक जाती। बाघ उस पर उछल पड़ता। वह अपने नंगे हाथों से बाघ से लड़ता। प्रत्येक बार महाराजा ही विजयी होता।
एक बार उस पर अपनी राजगद्दी गंवाने का खतरा था। एक उच्च पद पर आसीन ब्रिटिश अधिकारी ने प्रतिबन्धपुरम का भ्रमण किया। वह बाघ के आखेट में बहुत रुचि रखता था तथा इससे भी अधिक शोकीन था अपने द्वारा मारे गये बाघों के साथ चित्र खिंचवाने का। वह प्रतिबन्धपुरम में बाघ का आखेट करना चाहता था। महाराजा भी अपने संकल्प में दृढ़ रहा। उसने अनुमति प्रदान करने से मना कर दिया। क्योंकि उसने एक ब्रिटिश अधिकारी को अपनी इच्छा पूरी करने से रोका था, महाराजा पर अपना राज्य गंवाने का खतरा मंडराने लगा। इस समस्या पर महाराजा तथा दीवान ने विचार-विमर्श किया। विभिन्न डिजाइनों की लगभग 50 महंगे हीरों की अंगूठियां ब्रिटिश अधिकारी की पत्नी के पास भेजी गईं। राजा तथा मन्त्री आशा करते थे कि वह एक अथवा दो को चुन लेगी तथा शेष को लौटा देगी। परन्तु उसने सभी रख ली तथा धन्यवाद का पत्र भेज दिया। यद्यपि महाराजा ने तीन लाख रुपये मँवा दिये थे, किन्तु वह प्रसन्न था क्योंकि वह अपना राज्य तो बचा पाने में सक्षम रहा।
महाराजा के बाघ-आखेट अत्यन्त सफल होते रहे। दस वर्ष के भीतर ही उसने सत्तर बाघ मार डाले थे। किन्तु फिर प्रतिबन्धपुरम में कोई बाघ नहीं बचा। एक दिन महाराजा ने अपने दीवान को बुलवाया तथा उसे बताया कि उसकी बन्दूक द्वारा अभी 30 बाघों का आखेट करना शेष था। उसने दीवान को बताया कि उसने विवाह करने का निर्णय कर लिया था। दीवान ने ऐसे राज्य की सही कन्या का चुनाव किया जिसमें बाघ बहुत बड़ी संख्या में थे। प्रत्येक बार जब महाराजा जंग जंग बहादुर अपने ससुर से मिलने जाता, तो वह पाँच या छह बाघ मार डालता। इस प्रकार प्रतिबन्धपुरम के राजमहल के स्वागत कक्ष की दीवारें 99 बाघों की खालों से सुसज्जित हो गई थीं।
एक सौ की संख्या पर पहुँचने के लिये केवल एक बाघ को मारना शेष था। किन्तु अब उसके ससुर के राज्य में भी बाघों के प्रांगण शुष्क (बाघ-विहीन) हो गये। बाघों को कहीं भी ढूंढना असम्भव हो गया। महाराजा उदासी में डूब गया। शीघ्र ही उसे एक सुखद समाचार मिला। उसके अपने राज्य में, पहाड़ी के पास वाले गाँव में, भेड़े प्रायः गायब होने लगीं। निश्चय ही कोई बाघ कार्यरत था। ग्रामीण लोग महाराज को समाचार देने दौड़े, किन्तु बाघ सरलता से नहीं पाया गया। महाराजा का क्रोध तथा हठ (जिद्दीपन) ऊपर चढ़ता गया। कई अधिकारी अपनी नौकरियाँ आँवा बैठे।
एक दिन बाघ-राजा अत्यधिक क्रोधित थी। उसने दीवान को बुलाया तथा तुरन्त लगान को दो गुणा करने का आदेश दिया। दीवान ने कहा कि लोग असन्तुष्ट हो जायेंगे, फिर उनका प्रदेश (राज्य) भी भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का शिकार बन जायेगा। राजा ने दीवान को त्याग पत्र देने को कहा। दीवान भयभीत हो गया। उसे अपना जीवन लौटता हुआ तभी महसूस हुआ जब उसने उस बाघ को देखा जिसे मद्रास के जन-उद्यान से लाया गया था तथा उसके घर में छिपा कर रखा गया था।
आधीरात को नगर शान्तिपूर्वक सो रहा था। दीवान तथा उसकी वृद्धा पत्नी ने बूढ़े बाघ को कार तक घसीटा तथा इसको सीट पर धकेल दिया। दीवान ने स्वयं गाड़ी सीधे उस जंगल तक चलाई जहाँ महाराजा शिकार कर रहे थे। अब बाघ ने कार से बाहर निकलने से इन्कार कर दिया। किसी प्रकार दीवान ने इस (हिंसक) पशु को उठाकर कार से बाहर फेंका तथा भूमि (जमीन) पर धकेला।।
अगले दिन, वहीं बाघ घूमता हुआ महाराजा के सामने पहुँचा तथा वहाँ खड़ा हो गया। असीमित आनन्द सहित महाराजा ने सावधानीपूर्वक बाघ का निशाना साधा। बाघ एक सिकुड़ा हुआ ढेर हो गया। महाराजा प्रसन्न था कि उसका एक सौ बाघों को मारने का प्रण पूरा हो गया था। महाराजा ने आदेश दिया कि बाघ को भव्य शोभा-यात्रा द्वारा राजधानी लाया जाए तथा अपनी कार में चला गया। महाराजा के जाने के पश्चात्, शिकारी बाघ को समीप से देखने पहुँचे । बाघ ने अपनी आँखें घुमाईं तथा उनकी ओर देखा। लोगों ने समझ लिया कि बाघ मरा नहीं थी। गोली निशाना चूक गई थी। वह तो गोली के पास से निकलने की ध्वनि से ही मूर्छित हो गया था। शिकारियों में से एक ने एक फुट के फासले से निशाना साधा तथा बाघ को गोली से मार गिराया। मृत बाघ को नगर में शोभायात्रा (जुलूस) में ले जाया गया तथा दफना दिया गया।
कुछ दिन पश्चात महाराजा के पुत्र का तीसरा जन्म दिवस मनाया गया। वह अपने पुत्र को उसके जन्मदिन पर कुछ विशेष उपहार देना चाहता था। उसने खिलौनों की दुकान में लकड़ी का बना बाघ देखा और निर्णय किया कि यह सम्पूर्ण उपहार था। लकड़ी का बाघ केवल सवा दो आने की लागत का था। किन्तु दुकानदार ने तो इसे 300 रु० मूल्य पर भी लाभ का सौदा बताया। उसने इसकी कारीगरी की अत्यन्त दुर्लभ उदाहरण के रूप में प्रशंसा की। वास्तव में इसे एक अकुशल बढ़ई द्वारा तराशा गया था। इसका तल असमान (खुरदरा) था। इसके ऊपर प्रत्येक स्थान पर साही के काँटों की भाँति लकड़ी के नुकीले लम्बे टुकड़े उभरे हुए थे। जब महाराजा अपने पुत्र के साथ खेल रहा था, तो इन लम्बी उभरी हुई फाँसों में से एक महाराजा के दायें हाथ में छेद करती घुस गई। उसने इसे अपने बायें हाथ से खींच निकाला तथा राजकुमार के साथ खेलता रहा।
अगले दिन राजा के दाहिने हाथ में संक्रमण फैल गया। चार दिन में यह मवाद निकलने वाले घाव (फोड़े) में बदल गया। यह उसके पूरे बाजू में फैल गया। मद्रास से तीन प्रसिद्ध शल्य-चिकित्सक लाये गये। विचार-विमर्श के उपरान्त उन्होंने शल्य-क्रिया (आपरेशन) करने का निर्णय लिया। शल्य-क्रिया सफल रही, किन्तु महाराजा मर गया।
इस प्रकार सौवें बाघ ने बाघ-राजा से अन्ततः बदला ले ही लिया।
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