Glimpses of India Summary In English
I. A Baker From Goa
Bakers of Goa known as Pader
In old Portuguese days, the people of Goa ate loaves of bread. Now these loaves have disappeared. But their makers are still there. The furnaces also exist there even now. The sound of the traditional bakers’ bamboo can still be heard. Someone of the family still carries this business. These bakers are known as pader in Goa even today.
Coming of the baker
The baker used to be the author’s friend and guide. He used to come twice a day. The sound of his bamboo woke the author and others from sleep. The author used to run to him for bread- bangles. The maidservants used to buy loaves and carry them inside the houses.
Delivering the loaves
The baker came with the jhang, jhang’ sound of his bamboo staff. One hand supported the basket on his head. The other banged the bamboo on the ground. The baker would place the basket on the bamboo. The author and others would look into his basket. They would eat the loaves with hot tea. They would not brush their teeth.
Importance of bread
The baker was very important for all occasions. Marriage gifts were meaningless without the sweet bread called bol. Sandwiches, cakes and bolinhas were made with the bread.
Baker’s dress
The baker or bread-seller of the past had a peculiar dress. It was known as the kabai. It was a single-piece long frock. It reached down to the knees. It is similar to half pants of today.
Baker—a happy family
The baker usually collected his bills at the end of the month. Baking was a profitable profession in the olden days. The baker and his family never starved. Their fat bodies showed that they were happy and were not poor.
II. Coorg
Coorg—a heavenly place
Coorg lies between the coastal town of Mangalore and Mysore. It is a very beautiful place like heaven. It must have come from the Kingdom of God. Strong men, beautiful women and wild creatures live in it.
Coorg’s weather and environment
Coorg or Kodagu is the smallest district of Karnataka. It has evergreen forests, spices and coffee plantations. Many visitors come to it between September and March. The weather is fine then. The air is full of coffee flavour.
People of Coorg—origin etc
The people of Coorg are of Greek or Arabic descent. The story goes that a part of Alexander’s army settled here. Its return became impractical. These people married among the locals. This culture is seen in the martial traditions, marriage and religious rites. The Arab origin is seen in the long, black coat worn by the Kodavus. It is known as kuppia. It is like the kuffia worn by the Arabs and the Kurds.
Coorg and its people
Coorgi homes have a tradition of hospitality. The people have many tales of bravery. Coorg | Regiment is one of the most decorated in the Indian Army. General Cariappa, the first Army Chief, was a Coorgi. Even today Kodavus are the only people in India to carry firearms without a licence.
Its wildlife
The river Cauvery gets its water from Coorg’s forests and hills. Mahaseer, the largest freshwater fish is found in these waters. Kingfishers, squirrels and langurs are found near these waters. Birds, bees and butterflies give one a good company here. Elephants enjoy being bathed here by their mahouts.
The landscape
The Brahmagiri hills give the climber a whole view of Coorg. A walk across the rope bridge leads to the sixty-four-acre Island of Nisargadhama. Buddhist monks from India’s Tibetan settlement live in Bylakuppe here. One can see them dressed in red, ochre and yellow robes.
III. Tea From Assam
Rajvir and Pranjol on way to Assam
Rajvir and Pranjol were travelling to Assam. A tea vendor called ‘chai-garam … garam- chai’. They took tea and sipped it. Rajvir told Pranjol that over 800,000,000 cups of tea are drunk everyday throughout the world.
Tea gardens seen
Rajvir looked at the beautiful scenery outside. Pranjol kept reading his detective book. There was greenery outside. Soon the soft green paddy fields gave way to tea-bushes. Tea-bushes spread as far as the eye could see. There were shade trees also over the areas. In the distance there was an ugly building. It was a tea-garden.
About legends behind tea
They were in Assam, the tea-country. Assam has the largest concentration of tea plantations in the world. Rajvir told Pranjol that no one really knew who discovered tea. There are many legends about it.
Chinese legend
A Chinese emperor always boiled water before drinking it. One day a few leaves of branches burning under the pot fell into the water. It gave a delicious flavour. These were tea-leaves.
Indian legend
Bodhidharma, a Buddhist monk cut off his eyelids because he felt sleepy during meditations. Ten tea plants grew out of his eyelids. These leaves when put in hot water and drunk, banished sleep.
Tea and China
Rajvir told Pranjol that tea was first drunk in China. It was as far back as 2700 B.C. Words like chai and chini are Chinese. Tea came to Europe in the sixteenth century. It was then drunk more as medicine.
Reaching the destination
Both of them dropped at Mariani junction. They were driven to Dhekiabari Tea Estate. On both sides of the road there were acres and acres of tea-bushes. Women with bamboo baskets were plucking the new leaves from them.
Rajvir’s knowledge about tea plantations
Pranjol’s father received them there. They had come there in the sprouting season. It lasts from May to July. It gives out the best tea. Rajvir told this to Pranjol’s father. He told Rajvir that he knew many things about tea plantations. Rajvir told him that he would learn more about them there.
Glimpses of India Summary In Hindi
I. A Baker From Goa
गोवा के डबलरोटी बनाने वालों की पेडर के रूप में पहचान । पुराने पुर्तगाली समय में गोवा के मनुष्य पावरोटी खाते थे। अब ये पावरोटी अदृश्य हो गई हैं। परन्तु उनके बनाने वाले अब भी वहाँ – पर हैं। भट्ठियाँ भी अब भी वहाँ पर हैं। पारम्परिक डबलरोटी बनाने वालों की बाँस द्वारा उत्पन्न आवाज अब भी सुनी जा सकती है। परिवार का कोई एक सदस्य अब भी यह व्यवसाय चलाता है। आज भी गोवा में इन बेकरों को पेडर के रूप में जाना जाता है।
बेकर का आना
बेकर लेखक का मित्र और मार्गदर्शक होता था। वह दिन में दो बार आया करता था। लेखक और दूसरों को उसके बाँस की आवाज जगा दिया करती थी। लेखक डबलरोटी रूपी बैंगल्ज के लिये उसके पास दौड़ा करता था। नौकरानियाँ पावरोटी खरीदा करती थीं और उन्हें घर में अन्दर ले जाती थीं।
पावरोटी का बाँटना
बेकर अपने बाँस के डण्डे से ‘झग ! झंग !’ की आवाज के साथ आता था। एक हाथ उसके सिर पर रखी टोकरी को सहारा देता था। दूसरा जमीन पर बाँस को फटकाता था। बाँस पर बेकर टोकरी को रखता था। लेखक और दूसरे उसकी टोकरी में झाँक कर देखते। वे गर्म चाय के साथ पावरोटी खाते थे। वे अपने दाँतों को ब्रुश नहीं करते थे।
डबलरोटी का महत्त्व
सभी अवसरों के लिये बेकर काफी महत्त्वशाली था। शादी के उपहार, बिना मीठी डबलरोटी के जिसे बोल कहते थे निरर्थक थे। सैंडविच, केक और बोलिन्हस डबलरोटी के साथ बनाये जाते थे।
बेकर का पहनावा
भूतकाल के बेकर या डबलरोटी बेचने वाले की एक खास पोशाक होती थी। इसे कबाई कहा जाता था। यह एक ही टुकड़े का लम्बा फ्रॉक होता था। यह घुटनों तक आता था। यह आजकल की आधी पैन्ट की तरह से होता है।
बेकर का एक खुश परिवार
बेकर प्रायः अपने पैसे महीने के अन्त में लेता था। पुराने दिनों में बेकिंग का व्यवसाय ना, वाला होता था। बेकर और उसके परिवार कभी भूख से नहीं मरते थे। उनके मोटे शरीर दिखाते थे कि वे खुश थे और निर्धन नहीं थे।
II. Coorg
कुर्ग-एक स्वर्गिक स्थान
कुर्ग तटीय शहर मंगलौर और मैसूर के बीच में पड़ता है। यह स्वर्ग जैसा बहुत सुन्दर स्थान है। यह अवश्य ही भगवान की राजधानी से आया होगा। बहादुर मनुष्य, सुन्दर महिलाएँ और जंगली जानवर (प्राणी) इसमें रहते हैं।
कुर्ग का मौसम व पर्यावरण
कुर्ग या कोडागू, कर्नाटक का सबसे छोटा जिला है। इसमें हमेशा हरे-भरे रहने वाले जंगल, मसाले और कॉफी के बाग हैं। इसमें सितम्बर और मार्च के बीच में काफी यात्री आते हैं। तब मौसम बहुत अच्छा होता है। हवा में कॉफी की खुशबू होती है।
कुर्ग के व्यक्ति-उनकी उत्पत्ति आदि
कुर्ग के व्यक्तियों की उत्पत्ति मिस्र या अरबी है। एक कहानी है कि अलक्जैण्डर की फौज का एक भाग यहाँ बस गया था। इसकी वापसी असम्भव हो गई थी। इन आदमियों ने स्थानीय व्यक्तियों में शादी की। यह संस्कृति उनकी बहादुरी के रीति-रिवाजों, शादी और धार्मिक कार्यक्रमों में दिखती है। अरब उत्पत्ति कोड्वा द्वारा पहने गये लम्बे और काले कोट में दिखती है। इसे कुपीया कहा जाता है। यह अरबी और कुडू द्वारा पहनी जाने वाली कुफीया की तरह से होती है।
कुर्ग और इसके व्यक्ति
कुर्गी घरों में आदर-सत्कार का रिवाज है। उन लोगों की काफी बहादुरी की गाथायें हैं। भारतीय सेना में कुर्ग रेजिमेन्ट सबसे अधिक सम्मानितों में से एक है। पहला आर्मी चीफ जनरल करियाप्पा कुर्गी था। आज भी भारत में कोड़वा ही अकेले व्यक्ति हैं जिन्हें बिना लाइसैन्स के हथियार रखने की अनुमति है।
इसका वन्य जीवन
कुर्ग के जंगलों और पहाड़ियों से कावेरी नदी अपना पानी प्राप्त करती है। इस पानी में ताजा पानी की सबसे बड़ी मछली महासीर पाई जाती है। कौडिल्ले, गिलहरियाँ और लंगूर इस पानी के समीप पाये जाते हैं। पक्षी, मधुमक्खियाँ और तितलियाँ यहाँ पर एक अच्छी संगत देती हैं। अपने महावतों द्वारा यहाँ नहलाए जाने का हाथी आनंद लेते हैं।
भूवृश्य
ब्रह्मगिरि की पहाड़ियाँ चढ़ने वाले को कुर्ग का समूचा दृश्य प्रदान करती हैं। रस्से के पुल द्वारा चौंसठ एकड़ में फैले हुए निसर्गधाम टापू तक जाया जा सकता है। भारत के तिब्बती बस्ती से बुद्ध धर्म के भिक्षुक यहाँ बाईलाकुपे में रहते हैं। कोई भी उन्हें लाल, गेरूए और पीले पहनावे में देख सकता है।
III. Tea From Assam
राजवीर और प्रान्जल असम की यात्रा पर
राजवीर और प्रान्जल असम जा रहे थे। चाय बेचने वाले एक व्यक्ति ने कहा ” चाय गर्म … गर्म चाय’। उन्होंने चाय ली और उसकी चुस्की ली। राजवीर ने प्रान्जल को बताया कि संसार में रोज 800,000,000 कप से अधिक चाय पी जाती है।
चाय के बागान का दिखना
राजवीर ने बाहर सुन्दर दृश्य देखा। प्रान्जल ने अपनी जासूसी पुस्तक पढ़ना जारी रखा। बाहर हरियाली थी। शीघ्र ही हल्के हरे धान के खेतों ने चाय की झाड़ियों को स्थान दे दिया। जहाँ तक आँखें जाती थीं चाय की झाड़ियाँ फैली हुई थीं। इन इलाकों में छायादार वृक्ष भी थे। दूर एक भद्दी दिखने वाली बिल्डिंग थी। यह चाय बागान था।
चाय से सम्बन्धित दन्त कथाओं के बारे में
वे चाय के देश असम में थे। संसार में असम में सबसे अधिक चाय के बागान हैं। राजवीर ने प्रान्जले को बताया कि कोई यथार्थ में नहीं जानता कि चाय किसने खोजी थी। इसके बारे में काफी दन्त कथाएँ हैं।
चीनी दन्त कथा
चीन का एक सम्राट पानी पीने से पहले हमेशा उसे उबाला करता था। एक दिन बर्तन के नीचे जलती हुई टहनियों के कुछ पत्ते पानी में गिर गए। इनसे एक स्वादिष्ट सुगन्ध आ गई। ये चाय के पत्ते थे।
भारतीय दन्त कथा
बुद्ध के एक भिक्षुक बोधिधर्म ने अपनी पलकें काट लीं क्योंकि उसे गहन चिन्तन के दौरान नींद आ जाया करती थी। उसकी पलकों से चाय के दस पौधे उग आए। इन पत्तों को गर्म पानी में डालने से और पीने से नींद से छुटकारा पाया जा सकता था।
चाय और चीन
राजवीर ने प्रान्जल को बताया कि पहली बार चीन में चाय पी गई थी। यह 2700 ईसा पूर्व था। चाय और चीनी जैसे शब्द चीन देश के हैं। सोलहवीं शताब्दी में चाय यूरोप में आई। तब इसे दवाई के रूप में अधिक पीया जाता था।
गंतव्य स्थान पर पहुँचते हुए
वे दोनों मरियानी जंक्शन पहुँच गए। उन्हें धेकियाबाड़ी चाय बागान तक ले जाया गया। सड़क के दोनों तरफ चाय की झाड़ियों के एकड़ों में फैले हुए बागान थे। बाँस की टोकरी लिए हुए महिलाएँ उनसे नये पत्ते तोड़ रही थीं।
चाय के बागान के बारे में राजवीर का ज्ञान
प्रान्जल के पिताजी ने वहाँ उनका स्वागत किया। वे नई पत्तियों के उगने के मौसम में वहाँ आए थे। यह मई से जुलाई तक होता है। इस समय में उत्तम चाय मिलती है। राजवीर ने यह बात प्रान्जल के पिता को बताई। उसने राजवीर को बताया कि वह चाय के बागान के बारे में काफी चीजें जानता है। राजवीर ने उसे बताया कि वह वहाँ पर उनके बारे में और अधिक जान सकेगा।